राजनीति में दो विरोधी दलों का विचारधारा और मुददों पर राजनीति तो जगजाहिर है और एक दूसरे के खिलाफ खड़े होना भी स्वाभाविक है। लेकिन जब भाषा निम्न स्तर व हदों को पार कर लें तो उस पर अंकुष लगाना जरूरी है। नेताओं का बड़बोलापन और महिला नेताओं पर गलत प्रतिक्रिया भी लोगों से छिपी नहीं है। उससे उपजी कड़वाहट सामान्य व्यवहार और बोली तक को बुरी तरह प्रभावित करने लगे, तो यह निश्चित रूप से लोकतांत्रिक माहौल को भी बाधित करेगा। पिछले कुछ वर्षों से हमारे देश की राजनीति में ऐसा माहौल बन रहा है, जिसमें प्रतिद्वंद्वी दलों में मुद्दों पर उठी बात को उचित संदर्भ में देख-समझ कर एक परिपक्व राय या प्रतिक्रिया देने के बजाय दोनों पक्षों के समर्थक आपस में दुश्मन की तरह पेश आने लगते हैं।
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