उजाला सिटी न्यूज़
उत्तर प्रदेश
लखनऊ
28/02/2025
रोजा रखने से शारीरिक बेशुमार फायदे, जिस्म की सैकड़ों बीमारियों से मिलता है निजात
राजधानी लखनऊ के बाज़ारों मे हलचल शुरू
लखनऊ , उजाला सिटी न्यूज़, डेस्क। माह-ए-रमजान में तीस दिन को रोजे इंसान के जिस्मानी व रूहानी ताकत को मजबूत बनाता है। रोजे हमें भूखे रहने का एहसास भी दिलाता है। साथ ही साथ इंसानियत की तालीम भी देता है। रोजा जिस्म की अंदरूनी बीमारियों का खात्मा करने का बेहतरीन जरिया है। आज की भाग दौड़ की जिंदगी में इंसान को अपने अपने मजहबी तरीके से रोजा या उपवास बेहद जरूरी है। रोजे का एक साइंटिफिक नजरिया है। इस संबंध में आजाद नगर के बीए अंतिम वर्ष के छात्र अल फरहान दानिश ने तीस दिनों के रोजे के महत्व को बताते हुए कहा कि पहले दो रोजे से ब्लड शुगर लेवल गिरता है यानी ख़ून से चीनी के ख़तरनाक असरात का दर्जा कम हो जाता है।
दिल की धड़कन सुस्त हो जाती है, और ख़ून का दबाव कम हो जाता है। नसों जमाशुदा ग्लुकोज़ को आज़ाद कर देती हैं। जिसकी वजह से शरीर की कमज़ोरी का एहसास उजागर होने लगता है। ज़हरीले माद्दों की सफाई के पहले मरहले के नतीज़े में-सरदर्द, सर का चकराना, मुंह की बदबू खत्म हाेती है।
तीसरे से सातवें रोज़े तक जिस्म की चर्बी टूट फूट का शिकार होती है और पहले मरहले में ग्लूकोज में बदल जाती है। कुछ लोगों की त्वचा मुलायम और चिकनी हो जाती है। जिस्म भूख का आदी होना शुरू हो जाता है और इस तरह साल भर मसरूफ रहने वाला हाजमा सिस्टम ठीक रहता है। खून के सफ़ेद जरसूम और इम्युनिटी में बढ़ोतरी शुरू हो जाती है। हो सकता है रोज़ेदार के फेफड़ों में मामूली तकलीफ़ हो इसलिए कि ज़हरीले माद्दों (पदार्थो) की सफाई का काम शुरू हो चुका है। आंतों और कोलोन की मरम्मत का काम शुरू हो जाता है। आंतों की दीवारों पर जमा मवाद ढीला होना शुरू हो जाता है।
आठवें से पंद्रहवें रोज़े तक रोज़ेदार पहले से ज्यादा चुस्त महसूस करते हैं। दिमागी तौर पर भी चुस्त और हल्का महसूस करते हैं। हो सकता है कोई पुरानी चोट या जख्म महसूस होना शुरू हो जाए। इसलिए कि आपका जिस्म अपने बचाव के लिए पहले से ज़्यादा एक्टिव और मज़बूत हो चुका होता है। जिस्म अपने मुर्दा सेल्स को खाना शुरू कर देता है, जिनको आमतौर से केमोथेरेपी से मारने की कोशिश की जाती है। इसी वजह से सेल्स में पुरानी बीमारियों और दर्द का एहसास बढ़ जाता है। नाडिय़ों और टांगों में तनाव इसी अमल का क़ुदरती नतीजा होता है। जो इम्युनिटी के जारी अमल की निशानी है। रोज़ाना नामक के गरारे नसों की अकड़न का बेहतरीन इलाज है।
सोलहवें से तीसवें रोज़े तक इंसानी जिस्म पूरी तरह भूख और प्यास को बर्दाश्त का आदी हो चुका होता है। आप अपने आप को चुस्त, चाक व चौबंद महसूस करने लगते हैं। इन दिनों आप की ज़बान बिल्कुल साफ़ और सुथरी हो जाती है। सांस में भी ताजगी आ जाती है। जिस्म के सारे ज़हरीले माद्दों (पदार्थों) का ख़ात्मा हो चुका होता है। हाजमे के सिस्टम की मरम्मत हो चुकी होती है। जिस्म से फालतू चर्बी और खराब माद्दे निकल चुके होते हैं। बदन अपनी पूरी ताक़त के साथ अपने फऱाइज़ अदा करना शुरू कर देता है।
बीस रोजों के बाद दिमाग़ और याददाश्त तेज़ हो जाते हैं। तवज्जो और सोच को मरकूज़ करने की सलाहियत बढ़ जाती है। बेशक बदन और रूह तीसरे अशरे की बरकत को भरपूर अंदाज़ से अदा करने के काबिल हो जाते हैं। ये तो दुनिया का फ़ायदा रहा जिसे बेशक हमारे खालिक ने हमारी ही भलाई के लिए हम पर फजर किया। मगर देखिए उसका अंदाज़े कारीमाना कि उसके एहकाम मानने से दुनिया के साथ साथ हमारी आखिऱत भी संवारने का बेहतरीन बंदोबस्त कर दिया। माह-ए-रमजान में पांचों वक्त नियमित नमाजें अदा करने से जिस्मानी व दिमागी (शारीरिक व मानसिक) शक्ति में वृद्धि होती है। नफ्स (इंद्रियों) पर काबू पाने की सलाहियत में मजबूती आ जाती है। रोज़ा बुराइयों को कोसों दूर भगाने में मदद करती है। रोज़े की हर मजहब में अपनी खास अहमियत होती है। इससे जिस्म में पलने वाले परजीवी की खात्मा होती है। उपवास से बर्दाश्त व सहनश क्ति की क्षमता बढ़ती है। परहेजगारी में इजाफा होता है।
रोजा रखने के फायदे --
रमजान के पवित्र महीने में मुस्लिम समाज के लोग 30 दिन तक रोजे रखते हैं। रोजे के समय डाक्टर खान पान की चीजों पर विशेष ध्यान देने की सलाह देते हैं
रमजान के पवित्र महीने में रोजा सेहत के लिए फायदेमंद है। यह मजहबी आधार से भी साबित है और चिकित्सकीय आधार से भी। यही कारण है कि रमजान के अलावा भी कई मुस्लिम और गैर मुस्लिम लोग मानसिक और शारीरिक रूप से सेहतमंद रहने के लिए रोजा या व्रत करते हैं। रोजेदार को रोजा रखने से जहां रूहानी ताकत मिलती है तो वहीं कई गंभीर बीमारियों से भी निजात मिलती है। चिकित्सकों की मानें तो महीने में दो बार उपवास जरूर रखना चाहिए। मुबारक रमजान के तीस रोजे रखकर इंसान रूहानी ताकतों से रूबरू होता है। साल भर खाने पीने वाली चीजों से पाचन की गड़बड़ी कैलोस्ट्राल का बढ़ना व इनके अलावा कई अन्य बीमारियां रोजा रखने से खत्म हो जाती हैं।
आइए हम आपको बताते हैं रमजान में रोजा रखने से सेहत को किस तरह फायदा पहुंचता है।
1. मोटापे से छुटकारा-
मोटापा आजकल अधिकतर लोगों की समस्या बन चुका है। लेकिन आप रोजा रखकर बढ़ते हुए वजन को कंट्रोल कर सकते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास की स्टडी के मुताबिक, खाली पेट रहने या कम मात्रा में खाने से शरीर की सूजन कम होती है, ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है और वजन भी कम होता है। स्टडी के मुताबिक, फास्ट करने से शरीर की कोशिकाओं पर स्ट्रेस पड़ता है। इससे वजन कम होने में मदद मिलती है
2. खजूर क्यों है जरूरी-
रमजान में खजूर का खास महत्व होता है। इस्लाम में रोजा खोलने के लिए खजूर का इस्तेमाल करने के लिए कहा गया है। खजूर खाने से सेहत को भी बहुत फायदा पहुंचता है। खजूर खाने से शरीर को एनर्जी मिलती है। खजूर में मौजूद फाइबर से डाइजेशन बेहतर होता है। इसके साथ ही खजूर में पोटैशियम, मैग्नीशियम और विटामिन बी भी पाया जाता है, जो सेहत के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है।
3. कोलेस्ट्रोल में कमी-
हेल्थ एक्सपर्ट का मानना है कि रमजान के रोजे रखने से वजन कम होने के साथ-साथ शरीर में कोलेस्ट्रोल का स्तर भी कम होता है। कोलेस्ट्रोल कम होने से दिल सेहतमंद रहता है। साथ ही हार्ट अटैक और स्ट्रोक जैसी गंभीर बीमारियों से सुरक्षित रहा जा सकता है।
4. मेटाबॉलिज्म का बेहतह होना-
रोजे के दौरान दिनभर भूखे प्यासे रहने से मेटाबॉलिज्म बेहतर तरीके से काम करने लगता है। इससे खाने के ज्यादा से ज्यादा न्यूट्रिएंट्स शरीर को मिलते हैं। रमजान में लंबे समय तक भूखे रहने के बाद देर शाम खाने से शरीर में Adiponectin हार्मोन बनता है, ये शरीर को ज्यादा न्यूट्रिएंट्स एब्जोर्ब करने में मदद करता है।
5- नशे की लत से छुटकारा-
नशा से छुटकारा पाने के लिए रमजान सबसे अच्छा समय होता है। रोजे रखने के बाद व्यक्ति धूम्रपान, तंबाकू, मीठी चीजों के सेवन से बचा रहता है। UK नेशनल हेल्थ सर्विस के मुताबिक, धूम्रपान, अल्कोहल और तंबाकू की लत को दूर करने के लिए रमजान सबसे अच्छा समय है।
रोजा रखते समय बरतें ये सावधानियां ----
तली चीजों को कहें न-
रोजे के दौरान तली हुई चीजों को नहीं खाने की सलाह दी जाती है। सहरी के समय अंडा, आटे की रोटी या परांठा, ताजे फल आदि खाने से सेहत ठीक रहती है। ध्यान रहे सहरी के समय ज्यादा कॉफी या सोडा नहीं पीना चाहिए सेहत के लिए हानिकारक है। साथ ही सहरी में बिरयानी, कबाब, पिज्जा, और फास्ट फूड्स नहीं खाने चाहिए। ये आपकी सेहत पर बुरा असर डाल सकते हैं।
बीमार लोगों के लिये ये जरूरी-
जिन लोगों को दिल की बीमारी और मधुमेह की बीमारी है उन लोगों को कबाब, बिरयानी और चिकन खाने से बचना चाहिए। इफ्तार से लेकर सेहरी तक खाना खाने के समय हाथ अच्छे से धो लेने चाहिए क्योंकि भूख रहने पर शरीर में कमजोरी आ जाती है और कीटाणु जल्दी हमला करते हैं।
धूप में बाहर न निकलें रोजेदार-
गर्मी के दिन डिहाइड्रेशन का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में रोजेदार को धूप में बाहर नहीं निकलने की सलाह दी जाती है। ब्लडप्रेशर या सुगर हो तो उन्हें रोजा नहीं रखना चाहिए क्योंकि उस दशा में सुगर अनकंट्रोल हो सकता है। अगर किसी परिस्थिति में बाहर निकलने की नौबत आए तो तौलिया या गमछा बांधकर निकले। ज्यादा से ज्यादा समय कुलर व एसी में रहने से दिक्कत नहीं आएगी। अगर कोई परेशानी आए तो रोजा तोड़ दें। कमजोर, खून की कमी या गर्भवती महिलाएं तो भूल कर भी रोजा न रखें।
रूह से जिस्म तक हैं रमजान के फायदे
रमजान का पावन महीना हिजरी कैलेंडर का नौवां महीना कहलाता है। इसके अनुसार ही रोजे को हर व्यक्ति के लिए फर्ज व जरूरी करार दिया गया। अल्लाह के रसूल ने नौ वर्ष तक रोजा रखा और एक साल कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी रोजा रखा। रमजान का रोजा इस्लाम में चौथा रुक्न यानी अहम हिस्सा कहलाता है। इसमें इस बात पर पूरा इत्तेफाक जताया गया है कि जिसने इसके महत्वपूर्ण कार्य से इन्कार किया उसने अपना ही नुकसान किया। रोजे का वक्त सुबह सूरज निकलने से पहले शुरू होकर सूरज डूबने के बाद खत्म होता है।
रूह से लेकर जिस्मानी/बदन तक समाज में जिंदगी भर रोजे के बहुत से फायदे हैं। रोजा शरीर के अंगों को पाक साफ, शांत व नया स्वरूप अदा करता है। रोजा बुरी आदतों से बचने में अहम भूमिका अदा करता है। रोजे की बरकत से इंसान बेवजह के कार्यो से बचता है। रोजा रखने से व्यक्ति में जो अच्छी आदतें आती हैं वह उसे अल्लाह के करीब करती हैं। उसका रब राजी हो जाता है और बंदा अपने रब का शुक्र हासिल करता है। उसकी नेमतों से उसके दिखाए गए मार्ग को जेहन में उतार लेता है। गरीब व मोहताज भाइयों के गम दूर कर, उसके साथ अच्छा बर्ताव करता है। अल्लाह ताला ने फायदों की तरफ इशारा किया है, जिसके बारे में कहा गया कि, 'ऐ ईमान वालों तुम पर रोजे रखने का फर्ज किया गया है, जिस तरह तुमसे पहले लोगों पर फर्ज किया गया था, तुम तकवा इख्तियार करो।'