उजाला सिटी न्यूज़
उत्तर प्रदेश
लखनऊ
06/03/2025
लखनऊ,उजाला सिटी न्यूज़। सदियों से मनुष्य में अपनी उत्पत्ति, पूर्वजों और भविष्य को जानने की उत्कंठा रही है। हम कैसे अस्तित्व में आए, मनुष्य का क्रमिक विकास कैसे हुआ, और मृत्यु के बाद क्या होता है—ये सभी प्रश्न हमारे मन में आते रहते हैं, जिनकी खोज लगातार जारी है। विशेष रूप से, जीवन के इस क्रमिक विकास के संदर्भ में कई विद्वानों ने महत्वपूर्ण कार्य किया है। 19वीं सदी में चार्ल्स डार्विन का योगदान इस क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण रहा, जबकि 21वीं सदी में भारतीय वैज्ञानिक डॉ. प्रभाकर राव चावरे ने इस विषय पर महत्वपूर्ण शोध किए। पहले, हम चार्ल्स डार्विन के विचारों की चर्चा करेंगे, उसके बाद डॉ. प्रभाकर राव चावरे के योगदान को समझेंगे।
चार्ल्स डार्विन ने अपनी पुस्तक के माध्यम से जीव-जंतुओं और मनुष्य के क्रमिक विकास की अवधारणा को स्पष्ट किया। यह पुस्तक सन् 1859 में प्रकाशित हुई थी। "द ओरिजिन ऑफ स्पेसीज" नामक इस ग्रंथ में उन्होंने विकासवाद के सिद्धांत का वर्णन किया। उनका मानना था कि सभी जीवों के पूर्वज समान थे और क्रमिक विकास के कारण विभिन्न प्रजातियाँ विकसित हुईं। डार्विन के अनुसार, मनुष्य का विकास वानरों से हुआ। 19वीं सदी में उनके इस विचार ने मानव विकास को समझने की एक नई दिशा दी, जिससे लोग स्वयं को और अपने अतीत को बेहतर समझने लगे। परिणामस्वरूप, चार्ल्स डार्विन अत्यधिक प्रसिद्ध हो गए, और उनके जन्मदिन, 12 फरवरी, को "चार्ल्स डार्विन डे" के रूप में मनाया जाने लगा। इस अवसर पर मानव विकास में दिए गए अन्य वैज्ञानिक योगदानों की भी विशेष रूप से चर्चा की जाती है।
भारतीय वैज्ञानिक डॉ. प्रभाकर राव चावरे का मानव विकास पर चार्ल्स डार्विन से अलग दृष्टिकोण था। डॉ. प्रभाकर राव ने डार्विन द्वारा प्रस्तुत तथाकथित 'वानर से मानव का विकास' सिद्धांत को खारिज करते हुए यह दर्शाया कि जीवों की उत्पत्ति और विकास की सभी घटनाएँ "ऑटो जेनेटिक थ्योरी" के अंतर्गत आती हैं, जिसमें मानव भी शामिल है।
डॉ. प्रभाकर राव चावरे जीवविज्ञान के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित नाम हैं। उन्होंने 40 वर्षों के गहन अध्ययन के पश्चात 2012 में "साइंस फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग" नामक पुस्तक प्रकाशित की। इस पुस्तक का शोध "इंडियन जर्नल ऑफ साइंटिफिक रिसर्च" के विशेष ऑनलाइन अंक (नवंबर 2017) में प्रकाशित हुआ था। मानव विकास पर यह संभवतः 21वीं सदी की सबसे महत्वपूर्ण खोज मानी जाती है। इस पुस्तक में उन्होंने 'स्व-उत्पत्तिवादी सिद्धांत' प्रस्तुत किया, जिसमें यह दर्शाया गया कि विज्ञान के क्षेत्र में हजारों वर्षों से चली आ रही मानव उत्पत्ति संबंधी विभिन्न धारणाओं को छोड़कर एक नया विकासात्मक सिद्धांत स्थापित किया गया।
डॉ. राव के अनुसार, "डार्विन के विकासवाद सिद्धांत से आगे का सिद्धांत मेरा 'स्व-उत्पत्तिवादी सिद्धांत' यानी 'ऑटो जेनेटिक थ्योरी ऑफ इवोल्यूशन' है।" उनका दावा है कि यह 21वीं सदी का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत है—"ऑटो जेनेटिक थ्योरी ऑफ इवोल्यूशन का जिनोम"। इसके अंतर्गत, हर जीव उचित वातावरण और भोजन चक्र के अनुसार स्वतः उत्पन्न होता है।
"साइंस फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग" पुस्तक का मुख्य उद्देश्य "ऑटो जेनेटिक थ्योरी ऑफ इवोल्यूशन" को प्रस्तुत करना है, जो यह दर्शाती है कि सभी जीव बिना किसी बाहरी सहायता के अपने आप उत्पन्न होते हैं। यह पुस्तक 'वानर से मानव के विकास' की धारणा का खंडन करती है और यह बताती है कि जैसे अन्य जीव स्वतः उत्पन्न हुए, वैसे ही प्रथम मानव भी भारत में स्वतः उत्पन्न हुआ। यह 'स्व-उत्पत्तिवादी सिद्धांत' है, जिसे डॉ. प्रभाकर राव चावरे ने पहली बार प्रतिपादित किया और इसे "स्व-उत्पत्तिवादी सिद्धांत ई-7" के रूप में प्रस्तुत किया। इस पुस्तक में उन्होंने यह भी कहा है कि अन्य जानवरों की तरह मानव का भी विकास अनुकूल परिस्थितियों में स्वतः हुआ।
इस सिद्धांत के अनुसार, "बंदर से आदमी का विकास नहीं हुआ, बल्कि ऑटो जेनेटिक थ्योरी के तहत स्वतः आदमी का विकास हुआ।" वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने के लिए वे मनुष्यों को अंधविश्वास से दूर रहने की सलाह देते हैं। डॉ. प्रभाकर राव चावरे के अनुसार, "डार्विन का विकासवाद सिद्धांत अधूरा था। यदि बंदर से मानव का विकास हुआ होता, तो आज के समय में बंदर विलुप्त हो चुके होते, लेकिन आज भी हमें बंदर और चिंपांजी देखने को मिलते हैं।"
डॉ. राव के अनुसंधानों की गहराई को देखते हुए उनकी वैज्ञानिक शोध को "इंडियन जर्नल ऑफ साइंटिफिक रिसर्च" में विशेष स्थान दिया गया। उनके बेहतरीन कार्यों के लिए उन्हें एलिमेंटोपैथी प्रतिष्ठान, अमरावती (महाराष्ट्र) द्वारा "डॉक्टर ऑफ साइंस इन एलिमेंटोपैथी" की उपाधि से सम्मानित किया गया।
अचलपुर के निवासियों का मानना है कि चूंकि डॉ. प्रभाकर राव चावरे का जन्म 10 अगस्त 1938 को महाराष्ट्र के विदर्भ प्रांत के अचलपुर शहर में हुआ था, इसलिए उनके सम्मान में 10 अगस्त को 'विश्व ह्यूमन डे' के रूप में मनाया जाए और उन्हें "फादर ऑफ ह्यूमन" के रूप में मान्यता दी जाए। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि विज्ञान के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया जाना चाहिए, जिससे न केवल विज्ञान के क्षेत्र में बल्कि अचलपुर और पूरे विदर्भ क्षेत्र में गर्व की अनुभूति होगी।
डॉ. प्रभाकर राव चावरे एक वैज्ञानिक होने के साथ-साथ समाजसेवी भी थे। "ऑटो जेनेटिक थ्योरी" देकर उन्होंने भारत को वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रदान किया, वहीं दूसरी ओर अपनी संस्था "टेक्निकल प्रोफेशनल एजुकेशन इन इंडिया फाउंडेशन (एनजीओ)" के माध्यम से जरूरतमंदों की सहायता भी की।
उन्होंने अपने शोध कार्यों के साथ-साथ 40 वर्षों तक इस संस्था के माध्यम से समाज के पिछड़े, गरीब, असहाय और जरूरतमंद हजारों युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने का कार्य किया। उनके निधन के बाद, यह संस्था अब उनके सुपुत्र बलवंत चावरे की देखरेख में कार्य कर रही है, जो उनके द्वारा स्थापित इस संस्था की गतिविधियों को आगे बढ़ा रहे हैं।