देश में वर्गिकी विशेषज्ञों की घटती संख्या चिंता का विषय: डॉ वाघ

लखनऊ, उजाला सिटी। देश में वर्गिकी के विशेषज्ञों की घटती संख्या एवं वर्गिकी के क्षेत्र में नई प्रौद्योगिकी के प्रयोग को देखते व इस क्षेत्र की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए वर्गिकी के विशेषज्ञों को तैयार किया जा सके यह जानकारी कार्यक्रम के संयोजक एवं संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ विजय विष्णु वाघ ने कार्यक्रम की उत्पति के विषय में चर्चा करते हुए बताया उन्होंने बताया कि कार्यक्रम में 16 महिलाओं और 17 पुरुषों सहित 31 प्रतिभागी भाग ले रहे हैं जिनमें से अधिकांश महाराष्ट्र, असम एवं कर्नाटक से हैं | पादप वर्गीकरण एवं जैव वर्गिकी की पारंपरिक एवं आधुनिक पद्धतियों पर प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन सीएसआईआर-राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान, लखनऊ में 21 से 27 फरवरी तक आयोजित होने वाले पादप वर्गीकरण एवं जैव वर्गिकी की पारंपरिक एवं आधुनिक पद्धतियों पर प्रशिक्षण कार्यक्रम के उद्घाटन अवसर पर कही | इस अवसर पर इंसा के विशिष्ट वैज्ञानिक डॉ. आर आर राव उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे | इस प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण, भारत के सहयोग से किया जा रहा हैं |
डॉ एस के तिवारी ने मुख्य अतिथि एवम प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कहा कि कहा जाता है कि वर्गिकी एक मृतप्राय विधा है किंतु एनबीआरआई में विभिन्न क्षेत्रों के वैज्ञानिक आपस में मिलकर कार्य करते हैं जिससे वर्गिकी को भी समर्थन मिलता है. उन्होंने कहा कि वर्गिकी की महत्ता अभी भी है क्योंकि किसी भी पादप पर किसी भी प्रकार के अध्ययन के लिए उसकी सही पहचान करना सबसे पहला काम होता है और इसलिए वर्गिकी का जीवंत रहना आवश्यक है |
उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि ने अपने संबोधन में वर्गिकी के क्षेत्र में आने वाली समस्याओं की चर्चा करते हुए कहा कि अत्यधिक महत्व होने के बाद भी वर्गिकी की विधा को आज अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है और धीरे धीरे इसकी भूमिकापादप अन्य पादप विज्ञान क्षेत्रों को सहयोग प्रदान करने भर की रह गयी है | इस स्थिति के पीछे जो महत्वपूर्ण कारण हैं उनमें से प्रमुख हैं: वर्गिकी परियोजनाओं को वित्तीय सहयोग में कमी आना, कालेजों एवम विश्वविद्यालयों में वर्गिकी के विशेषज्ञों की कमी के कारण इस विषय को गैर विशेषज्ञों द्वारा पढाया जाना, वर्गिकी के शोध पत्रों को उच्च इम्पैक्ट फैक्टर जर्नलों में स्वीकार न किया जाना एवं शोधर्थियों आदि द्वारा इस विधा में रुझान कम होना | उन्होंने ऐसी स्थिति में इस तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रमों की आवश्यकता पर बल दिया |
प्रशिक्षण कार्यक्रम का समापन 27 फरवरी 2024 को किया जायेगा | इस दौरान प्रतिभागी को संस्थान के विशेषज्ञों द्वारा पादप वर्गीकरण एवं जैव वर्गिकी के विभिन्न पहलुओं पर प्रशिक्षण दिया जायेगा |

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