लखनऊ, उजाला सिटी। फल, फूल और औषधीय पौधों की खेती कर किसान अपनी आय बढ़ा सकते हैं। यह बातें सीएसआईआर– एनबीआरआई, लखनऊ ने अपने संस्थापक प्रोफ़ेसर कैलाश नाथ कौल की स्मृति में आयोजित व्याख्यान में कृषि एवं मंत्रालय के कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान विभाग के कृषि वैज्ञानिक चयन मंडल के अध्यक्ष डॉ. संजय कुमार ने मुख्य अतिथि के रूप में कही | उन्होंने भारत में हींग की खेती, पूर्वोत्तर में सेब की खेती, हिमाचल में वास्तविक दालचीनी की खेती तथा सजावटी पुष्पों में नए फूलों की खेती जैसी नवीन शुरुआतों की चर्चा भी की जिनके माध्यम से किसानों की आय भी बढ़ रही है। इस अवसर पर डॉ. संजय कुमार ने सतत जैव आधारित अर्थव्यवस्था में पौधों के महत्व पर भी बोला। उन्होंने कहा कि पद्मभूषण प्रोफेसर कैलाश नाथ कौल एक महान भारतीय वनस्पतिशास्त्री, प्रकृतिप्रेमी एवं सफल कृषि वैज्ञानिक थे जिनको बागवानी, वन्यजीव, पेड़ पौधों से काफी लगाव था। प्रो. कौल ने ही राष्ट्रीय वनस्पति उद्यान की वर्ष 1948 में स्थापना की जिसे बाद में वर्ष 1953 में सीएसआईआर-राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान कर दिया गया| इसके अलावा प्रो. कौल ने भारत के बाहर विभिन्न देशों जैसे श्रीलंका, इंडोनेशिया, थाईलैंड, जापान, फिलिपींस आदि में भी वनस्पति उद्यानों की स्थापना में अपना सहयोग दिया |
कार्यक्रम का प्रारंभ प्रोफेसर कैलाश नाथ कॉल को श्रद्धांजलि अर्पित करने के साथ हुआ | संस्थान के निदेशक प्रो डॉ. अजित कुमार शासनी ने अपने स्वागत सम्बोधन में कार्यक्रम में पधारे अतिथियों एवं श्रोताओं का स्वागत करते हुए प्रो. कौल के योगदान का उल्लेख किया। उन्होने कहा कि आज का सीएसआईआर-एनबीआरआई आज जिस नींव पर खड़ा है उसका निर्माण प्रो. कौल के विचारों से हुआ है।
डॉ. संजय कुमार ने अपने व्याख्यान में देश के आत्म निर्भर होने की दिशा में किये जा रहे प्रयासों का उल्लेख करते हुए कहा कि भविष्य में इस दिशा में कुछ क्षेत्रों का महत्वपूर्ण योगदान रहने वाला है जिनमें बायोफार्मा, बायो रिसर्च, बायो इंडस्ट्री, बायो-एग्री एवं बायो आई टी प्रमुख हैं. इन क्षेत्रों में किये जा रहे अपने प्रयासों के माध्यम से न केवल अगली पीढी के उत्पाद बनाने में मदद मिलेगी अपितु विभिन्न क्षेत्रों में आत्म निर्भरता भी प्राप्त होगी. उन्होंने इस सन्दर्भ में विभिन्न जैव-संसाधनों के उचित प्रयोग की दिशा में आने वाली चुनौतियों विशेषकर जैव संसाधनों की मात्रा एवं गुणवत्ता सुनिश्चित करना, भूमि का सदुपयोग, मूल्य वर्धन प्रक्रिया, प्रसंस्करण एवं पैकिंग तथा बाजार से संबंध स्थापित करने में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए उचित रणनीतियां बनाने पर चर्चा की. इस अवसर पर उन्होंने संसथान से अपने पुराने संबंधों की चर्चा करते हुए वैज्ञानिकों का आवाहन किया कि वह ऐसे शोध कार्यों पर अधिक ध्यान दें जिनके लाभ आम जनता एवं उद्योगों तक पहुँचाया जा सके |
कार्यक्रम के अंत में संस्थान के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. एस के तिवारी ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया |